शाम के समय राजधानी दिल्ली बेहद खूबसूरत लगती है। दिल्ली में प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास का मिलन अपने आप में अजूबा है। दिल्ली में जहां एक तरफ कनॉट प्लेस की खूबसूरती से नजरें हटती नहीं है वही दूसरी तरफ राजधानी में कुछ ऐसी भी जगहें हैं जहां लोग जाने से डरते हैं। दिन में अगर कोई उन जगहों पर चला भी जाए तो रात में जाने से कतराते हैं। दिल्ली की सबसे डरावनी जगहों में से एक “खूनी दरवाजा” “Khooni Darwaza New Delhi” इस दरवाजे के बारे में कहा जाता है कि रात में यहाँ से रोने और चीखने की आवजें सुनाई देती है। आज हम दिल्ली की सबसे डरावनी जगहों में से एक “खूनी दरवाजा” के बारे में जननेंगे।
कुछ लोग कहते हैं कि 1857 की बगावत के बाद यहाँ पर अंग्रेजों ने अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बेटों और पोतों को गोली मारकर हत्या कर दी थी और उसके बाद से इसे खूनी दरवाजा का नाम दिया गया। बहादुर शाह जफर के बेटे मिर्जा मुगल और मिर्जा खिज्र सुल्तान और पोते मिर्जा अबू बख्त को एक ब्रिटिश अधिकारी मेजर विलियम हॉडसन ने गोली मार दी थी। हॉडसन ने सम्राट का आत्मसमर्पण प्राप्त किया, और अगले दिन हुमायूं के मकबरे पर तीन राजकुमारों से बिना शर्त आत्मसमर्पण के लिए कहा था। हॉडसन ने बादशाह के परिवार के लगभग 16 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें हुमायूं के मकबरे से एक टुकड़ी के साथ एक बैलगाड़ी में ले जा रहा था। ऐसा कहा जाता है कि इस दरवाजे पर पहुंचने के बाज सफेद कपड़ा बांधे हुए हजारों गाज़ियों ने घेर लिया था। हॉडसन लिखता है कि जहां तक उसकी नजर जा सकती थी वो चारों तरफ से गाजियों से घिरा हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि हॉडसन ने तीनों को घटनास्थल पर उतरने का आदेश दिया उन्हें नंगा कर दिया और बिल्कुल नजदीक से गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
1857 के विद्रोह के समय खूनी दरवाजा एक तोरण द्वार था, पारंपरिक अर्थों में यह कोई दरवाजा नहीं था। इके बारे में एक और कहावत है कि 1739 में ईरानी शासक नादिर शाह ने जब दिल्ली पर चढ़ाई की तो जमकर कत्लेआम किया और उसकी वजह से काफी खून बहा और उसकी वजह से इस दरवाजे का नाम खूनी दरवाजा पड़ गया। हालांकि इस थ्योरी पर कुछ इतिहासकार संदेह जताते हैं। लेकिन इस दरवाजे को लेकर कुछ और भी कहानिया प्रचलित हैं जैसे जहांगीर जब मुगलिया गद्दी पर बैठने का प्रयास कर रहा था तो उस समय अकबर के नवरत्नों में से एक अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना ने विरोध किया था। बदले की आग में जल रहे जहांगीर ने उसके दो बेटों को मरवा दिया और लाश को दरवाजे के पास रखवा दिया। औरंगजेब ने अपने बड़े भाई दाराशिकोह को मरवा दिया था और इस गेट पर उसके जनाजे का प्रदर्शन कराया ताकि लोगों में उसका खौफ बना रहे। इस दरवाजे को लेकर कई तरह की कहानियां हैं लेकिन 1857 की बगावत से पहले इसका कोई लिखित दस्तावेज नहीं है। वजह चाहे कोई भी हो, लेकिन दिल्ली का “खूनी दरवाजा” आज भी लोगों के बीच में मिस्ट्री बनी हुई है।